prahaar wrote:Any thoughts ideas about a very essential question about gaining Sabka Saath?
क्षमा-दया-ताप त्याग मनोबल सबका लिया सहारा,
पर नरव्याध सुयोधन तुमसे कहो कहाँ कब हारा?
क्षमाशील हो रिपुसमक्ष तुम विनीत हुए जितना ही,
दुष्ट कौरवों ने तुमको कायर समझा उतना ही,
अत्याचार सहन करने का कुफल यही होता हैं
पौरुष का आतंक मनुज कोमल होकर खोता हैं
क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल हैं
उसका क्या जो दंतहीन विषरहित विनीत सरल हैं?
तीन दिवस तक पंथ मांगते रघुपति सिन्धु किनारे,
बैठे पढ़ते रहे छंद अनुनय के प्यारे प्यारे.
उत्तर में जब एक नाद भी नहीं उठा सागर से,
उठी अधीर धधक पौरुष की आग राम के शर से,
सिन्धु देह धर त्राहि-त्राहि कर आ गिरा शरण में,
चरण पुजे दासता ग्रहण की बंधा मूढ़ बंधन में,
सच पूछो तो शर में ही बसती हैं दीप्ति विनय की,
संधिवचन संपूज्य उसीका, जिसमे शक्ति विजय की
सहनशीलता क्षमा दया को तभी पूजता जग हैं
बल का दर्प चमकता उसके पीछे जब जगमग हैं...
OR in words of Goswami Tulsidas - Bhay bin hoy na preeti..